Monday, February 6, 2023

विलुप्ति

 विलुप्ति 

                      Photo credit...@Roop Singh

विलुप्ति 


क्षण क्षण विलुप्त हो रहा हूं।
कण कण स्वयं से, जैसे मैं मुक्त हो रहा हूं।
प्राची से निशा तक हो रहा हूं।...
भोतिकि से कल्पना तक हो रहा हूं...

हो रहा हूं मुक्त,स्वपन से वास्तविकता तक..
हो रहा विलुप्त अपने अस्तित्व की परिधियों की परिपाटी से...

विलुप्त हो रहा हूं अंतहीन समय में... 
ज्ञान की पराकाष्ठा की ओर...
सुदूर इस माटी से।

हो रहा हूं मुक्त, अपनी भावनाओं से...
अपनी अकांक्षाओं से....
भयभीत कर देने वाली कथाओं से...!

धरा से आकाश की ओर हो रहा हूं...
भूत और भविष्य की सीमा के पार..!
नए किसी आयाम की शिराओं की ओर हो रहा हूं....

तत्त्व से मुक्त हो....!
ऊर्जा पुंज के प्रथम स्रोत की प्राप्ति की
और हो रहा हूँ।....

क्षण क्षण हो रहा हूं, कण कण हो रहा हूं।
मैं विलुप्त हो रहा हूं....
मैं मुक्त हो रहा हूं.....!!

(c) @ Roop Singh 20/10/21

                     Photo credit @ Roop Singh