Wednesday, October 11, 2023

असंतुलन

असंतुलन



                  art work by. .....Roop Singh 


असंतुलन 

कुछ भी न होने पर भी,  एक-दो चीजें हैं....
जो स्वाभाविक रूप से रहती है विद्यमान ...

यहां मतलब ! कुछ भी न होने की स्थिति से है .....
रहता है तब!  अंधेरा, समय और रिक्त (आकाश असीमित)...

ये एक विज्ञान की पहेली जैसा है.....
पर, मैं समझता हूं..
सर्वप्रथम ! जब किसीका जन्म हुआ होगा उस शून्य में....
तो जरूर ! वह गणित ही रहा होगा.....
और बाद में निसंदेह ऊर्जा शक्ति भी....

यह तो हुई कुछ भी न होने की स्थिति की बात.....

अब थोड़ी दृष्टि इस भौतिकी पर भी डालते हैं....
चलो मानव जीवन को उदाहरण के लिए लें. ...

आप  देखिए...
यहां सब कुछ होते हुए भी.....
एक तुलनात्मक और असंतुलित समानता दिखती है....
कुछ भी न होने की स्थिति जैसी ही....

दिखता है जीवन में अंधेरा, अंधेरा, अंधेरा....
समय में, और असमय में भी .....
कितना कुछ होने के बाद भी दिखता है...
केवल नीरस अंधेरा....

और इस प्रकार बना रहता है जीवन में....
रिक्त, रिक्त, रिक्त. ....
विशाल रिक्त अकल्पनीय ब्रह्मांड जैसा....

मान लेता हूं जीवन में विज्ञान अपने ढंग से काम करता रहा होगा.....
पर आप देखिए.....
यहां गणित भी जबरदस्त ढंग से काम करता है.....

के! तर्क - वितर्क चलता ही रहता है.....
मस्तिष्क के पटल पर.....
अनवरत ही. .....

जाने कौन सा समाधान चाहता है, आखिर यह जीवन....
गणित की भाषा में कहूं तो...!
न जाने ! कौन सा हल खोजना चाहता है यह जीवन....

सारी माथा-पच्ची  के बाद...
एक ही निष्कर्ष सही लगता है.....

ऊर्जा को अंततः शून्य  में ही समा जाना चाहिए. ...
हां ! समा जाना चाहिए शून्य मैं ही. .....!!

(c)@ Roop Singh 08/10/23




Sunday, September 3, 2023

कष्ट

 कष्ट



                    Photo credit. ..@ Roop Singh 

कष्ट


उस रोज़ बहुत भयंकर बारिश हुई....
होती भी क्यों नहीं ?
पिछ्ले दो हफ्तों से गर्मी बहुत तेज़ जो थी...

पर शिकायत है मुझे उन बादलों से...
उन्हें नहीं बरसना चाहिए था..
दो दिन और रुक जाते !..

उस बेचारे पर कहर बनकर टूट पड़े...
बेअकल - बेअदब कहीं के...

आखिर जब कोई दुःखी हो..
ये शब्द ठीक नहीं..
हां, जब कोई बहुत पीड़ा में हो...
अत्यंत पीड़ा में...

तब सबको शांत रहना ही चाहिए...
जब तक के पीड़ा का मवाद , बहकर बाहर ना निकल जाए...

मगर बेशर्मी तो देखो...!
छ्प्पर फाड़ बरसा, चूता रहा रात भर...
कहीं सूखा ना छोड़ा बेचारे के घर में...

वो रो लेना चाहता था, जी भर के...
मगर ये बेशर्म , उस अभागे पर भारी रहे ....

उसके रोने के अधिकार की अनदेखी नहीं होनी चाहिए थी...
हे ईश्वर !....
आखिर ! उस दिन, उसने अपना  जवान बेटा खोया था ...!

(c) @ Roop Singh 09/06/21





Photo credit @ Roop Singh 

Monday, February 6, 2023

विलुप्ति

 विलुप्ति 

                      Photo credit...@Roop Singh

विलुप्ति 


क्षण क्षण विलुप्त हो रहा हूं।
कण कण स्वयं से, जैसे मैं मुक्त हो रहा हूं।
प्राची से निशा तक हो रहा हूं।...
भोतिकि से कल्पना तक हो रहा हूं...

हो रहा हूं मुक्त,स्वपन से वास्तविकता तक..
हो रहा विलुप्त अपने अस्तित्व की परिधियों की परिपाटी से...

विलुप्त हो रहा हूं अंतहीन समय में... 
ज्ञान की पराकाष्ठा की ओर...
सुदूर इस माटी से।

हो रहा हूं मुक्त, अपनी भावनाओं से...
अपनी अकांक्षाओं से....
भयभीत कर देने वाली कथाओं से...!

धरा से आकाश की ओर हो रहा हूं...
भूत और भविष्य की सीमा के पार..!
नए किसी आयाम की शिराओं की ओर हो रहा हूं....

तत्त्व से मुक्त हो....!
ऊर्जा पुंज के प्रथम स्रोत की प्राप्ति की
और हो रहा हूँ।....

क्षण क्षण हो रहा हूं, कण कण हो रहा हूं।
मैं विलुप्त हो रहा हूं....
मैं मुक्त हो रहा हूं.....!!

(c) @ Roop Singh 20/10/21

                     Photo credit @ Roop Singh