असंतुलन
art work by. .....Roop Singh
असंतुलन
कुछ भी न होने पर भी, एक-दो चीजें हैं....
जो स्वाभाविक रूप से रहती है विद्यमान ...
यहां मतलब ! कुछ भी न होने की स्थिति से है .....
रहता है तब! अंधेरा, समय और रिक्त (आकाश असीमित)...
ये एक विज्ञान की पहेली जैसा है.....
पर, मैं समझता हूं..
सर्वप्रथम ! जब किसीका जन्म हुआ होगा उस शून्य में....
तो जरूर ! वह गणित ही रहा होगा.....
और बाद में निसंदेह ऊर्जा शक्ति भी....
यह तो हुई कुछ भी न होने की स्थिति की बात.....
अब थोड़ी दृष्टि इस भौतिकी पर भी डालते हैं....
चलो मानव जीवन को उदाहरण के लिए लें. ...
आप देखिए...
यहां सब कुछ होते हुए भी.....
एक तुलनात्मक और असंतुलित समानता दिखती है....
कुछ भी न होने की स्थिति जैसी ही....
दिखता है जीवन में अंधेरा, अंधेरा, अंधेरा....
समय में, और असमय में भी .....
कितना कुछ होने के बाद भी दिखता है...
केवल नीरस अंधेरा....
और इस प्रकार बना रहता है जीवन में....
रिक्त, रिक्त, रिक्त. ....
विशाल रिक्त अकल्पनीय ब्रह्मांड जैसा....
मान लेता हूं जीवन में विज्ञान अपने ढंग से काम करता रहा होगा.....
पर आप देखिए.....
यहां गणित भी जबरदस्त ढंग से काम करता है.....
के! तर्क - वितर्क चलता ही रहता है.....
मस्तिष्क के पटल पर.....
अनवरत ही. .....
जाने कौन सा समाधान चाहता है, आखिर यह जीवन....
गणित की भाषा में कहूं तो...!
न जाने ! कौन सा हल खोजना चाहता है यह जीवन....
सारी माथा-पच्ची के बाद...
एक ही निष्कर्ष सही लगता है.....
ऊर्जा को अंततः शून्य में ही समा जाना चाहिए. ...
हां ! समा जाना चाहिए शून्य मैं ही. .....!!
(c)@ Roop Singh 08/10/23