बिखराव
Photo credit.. Roop Singh
बिखराव
जीवन में एक पड़ाव के बाद....
पाता हूं बिखराव ही बिखराव...
बिखराव इतना ...?
के ! बँट गया हूं, असखंय टुकडों में....
अब नहीं दिखता पूरा, मैं किसीको भी...
जिसकी दृष्टि जितने टुकडों पर...
उसे मैं उतना दिखता.....
सब...!
अब शंका से मुझे देखते.....
और यदा-कदा तो कह भी देते...
"तुम हमेशा से, ऐसे तो न थे "....
अब मैं, इस सतहि दृष्टिभ्रम के बारे क्या कहूं.....!
सच तो ये है....
के ! मैं, अब भी वही हूं...
जो मैं हमेशा से था....!!
पर, जब सभीको...
अपने अपने आंकलन से मुझे देखना है....
तब, मुझे तो बँटना ही था...
असखंय टुकडों में...
सो, यूं मेरा बिखराव हुआ....!!
परंतु , यदि कोई झांक सके मेरे भीतर...
तो मैं अब भी वही तो हूं.....
जो मैं था....!!
(c) @ Roop Singh 08/10/22
Very nice poetry 👍👍
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