प्रतिक्षा
Photo credit... Artra Beginnings
प्रतिक्षा
प्रतिक्षा मेरी, कोई प्रतिज्ञा तो नहीं.....
पर हां, एक कीर्तिमान जैसी है......
तुम ही देखो !......
कितने बरस हुए जाते हैं......
ऋतुएं आती हैं, जाती हैं....
पर मेरी रितु बदलती नहीं....
मैं एक ही धुरि पर टिका रहता हूं.....
यह आसमान और धरा, रंग बदलते हैं.....
पर मैं, एक ही रंग ओढ़े रहता हूं....
ये सावन, वह बसंत....
और सरद की धूप....
सब मुझे कहते हैं.....
रंग बदलो, हमारे संग बदलो....
अब मैं उन्हें क्या बताऊं....
के, मेरे इस उदास चेहरे के पीछे....
मेरी प्रतीक्षाओं में एक मोहक सुगंध है....
एक आंतरिक वार्तालाप है,
मुग्ध मन्त्रणा जैसा....
और, वही मेरी रितु है.......!!
(c) @ Roop Singh 20/07/22
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