अर्थ
Photo credit...@ Roop Singh
अर्थ
उम्र बिताई अबतक, हेर-फेर में.....
के ! सुलझ जाएगी जिन्दगी.....
मगर ! उलझा ही रहा हमेशा.....
बिना काम और बिना लक्ष्य के....
छोटी - छोटी सी बातों में....
जिनका कोई अर्थ, था ही नहीं जीवन में....
और ना कभी हो सकता था......
बहुत सोच विचार किया....
के ! कब पसंद था मुझे ?.....
इस तरह उलझे रहना......
बिना काम और बिना लक्ष्य के.......
छोटी - छोटी सी बातों में.....
जिनका कोई अर्थ, हो नहीं सकता था.....
मेरे इस बहुमूल्य जीवन में.....
सो आज ! अपने अधूरे अनुभव से......
पंहुचा हूं इस निष्कर्ष पे....
सहज और सुलझे रहने से ही.......
होता है पूर्ण ! अर्थ इस जीवन का....
और, सहज और सुलझे रहने से ही होती है सुगम....
किसी लक्ष्य की प्राप्ति .....
और इतने सब, अंदरूणी उथल - पुथल के बाद.....
भरता हूं, एक लम्बी सांस.....
पाता हूं स्वयं को सहज और सुलझा.....
जैसे : खुल गए हो, ज्ञान के चक्षु.....
दिखता है , पूर्ण होते हुए.....
अर्थ ! इस बहुमूल्य जीवन का....
और समझता हूं....
यही मानव प्रकृति का प्रतिपालन है......
(c) @ Roop Singh 16/02/2016
Photo credit..@ Roop Singh
मंथन
ये बहुत महत्व रखता है, के जीवन के प्रति हमारा नजरिया और व्यवहार कैसा है। हमे परिश्रमी, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, करूणावान, सत्यवान, देशभक्त, परहितकारी, मिलनसार, पर्यावरण रक्षक और एक अच्छा व्यक्ति और नागरिक होने के लिए जिन सही आचरणों की आवश्यकता पड़े उन्हें अपनाना चाहिए। यही उत्तम मार्ग है एक सुखमय जीवन और समाज के लिए। ये सभी की जिम्मेदारी भी है।
पर व्यक्तिगत रूप से इंसान की प्रकृति ऐसी है । कि ! उसे अपने आप में शांत और संतुष्ट होने की एक चाह तो होती है। पर वह हमेशा भटकाव और अस्थिरता का चुनाव ज्यादातर करता है। इसके अनेक कारण वर्णित है किताबों, काव्यों, ग्रंथो आदि में। मुख्य वजह उसकी अपनी लालसा हो सकती है और आज के दौर में तो इंसान का जो व्यावसायिक आधुनिकरण हुआ है, उसके चलते कई और कारण भी जुड़ गए है। चाहे ना चाहे भी इंसान उलझनों को न्यौता दे देता या उनमें फंस जाता है। जंहा उसे मानसिक तनाव से भी गुजरना होता है। और कई बार अवसाद इंसान के दिल दिमाग में घर कर जाता है। इसकी भी अनदेखी नहीं होनी चाहिए। क्योंकि अवसाद का बुरा प्रभाव शरीर पर भी होता है। दिनचर्या , खानपान , निंद्रा आदि में होने वाले बदलावों के कारण।
इसलिए इंसान को चाहिए कि सुलझा हुआ रहे, सहज रहे और सरल रहने की कोशिश करे। अब सवाल उठता है कैसे ?
तो देखिए! इंसान की मूल जरूरतें इतनी भी नहीं की जितनी चीजों के पीछे आज इंसान भागता है। और एक ऐसे चक्र में स्वयं को फसा लेता है। जहां वह स्वयं को जीना भूल जाता है, समय का सही उपयोग किए बिना उसे गुजरने देता है। इंसान होने की मौलिकता से कट जाता है। यहां बदलाव लाने की बहुत गुंजाइश है और जिन्हे लाना चाहिए। केवल भाग्य का ठीकरा फोड़ कर स्वयं को अलग नहीं किया जा सकता, इस बात से जो असल में इंसान के जीवन के लिए सहायक है।
इसलिए बहुत जरूरी है इंसान को अपनी सही क्षमता और पसंद की पहचान करके, उसके अनुरूप ही काम और लक्ष्य का चुनाव करना चाहिए। ताकि काम, तनाव का कारण कम बने। और जब काम पसंद का होगा तो काम में मन भी लगेगा ।
साथ ही अपने रिश्तों को, परिवार को , मित्रो आदि को भी समय देना चाहिए जिससे ना केवल प्रेम की प्रगाड़ता बढ़ती है, साथ ही अकेलेपन के अवसाद से भी इंसान बच जाता है । और आत्मबल भी बढ़ता है।
यहां सुलझे और सहज रहने से यही पर्याय है। की अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए। सरल रहे, खुश रहे, मुस्कुराते रहे ।
तर्क और बातों का कोई अंत नहीं । सुख और दुख एक हिस्सा है जीवन का । दोनों ही स्थितियों में एक सुलझा हुआ इंसान ही सुख का सही आनंद ले सकता है और दुःख से उबर सकता है। जीवन बहुत अनमोल और महत्वपूर्ण है। इसका सम्मान होना ही चाहिए।
Roop Singh 10/05/2020
पर व्यक्तिगत रूप से इंसान की प्रकृति ऐसी है । कि ! उसे अपने आप में शांत और संतुष्ट होने की एक चाह तो होती है। पर वह हमेशा भटकाव और अस्थिरता का चुनाव ज्यादातर करता है। इसके अनेक कारण वर्णित है किताबों, काव्यों, ग्रंथो आदि में। मुख्य वजह उसकी अपनी लालसा हो सकती है और आज के दौर में तो इंसान का जो व्यावसायिक आधुनिकरण हुआ है, उसके चलते कई और कारण भी जुड़ गए है। चाहे ना चाहे भी इंसान उलझनों को न्यौता दे देता या उनमें फंस जाता है। जंहा उसे मानसिक तनाव से भी गुजरना होता है। और कई बार अवसाद इंसान के दिल दिमाग में घर कर जाता है। इसकी भी अनदेखी नहीं होनी चाहिए। क्योंकि अवसाद का बुरा प्रभाव शरीर पर भी होता है। दिनचर्या , खानपान , निंद्रा आदि में होने वाले बदलावों के कारण।
इसलिए इंसान को चाहिए कि सुलझा हुआ रहे, सहज रहे और सरल रहने की कोशिश करे। अब सवाल उठता है कैसे ?
तो देखिए! इंसान की मूल जरूरतें इतनी भी नहीं की जितनी चीजों के पीछे आज इंसान भागता है। और एक ऐसे चक्र में स्वयं को फसा लेता है। जहां वह स्वयं को जीना भूल जाता है, समय का सही उपयोग किए बिना उसे गुजरने देता है। इंसान होने की मौलिकता से कट जाता है। यहां बदलाव लाने की बहुत गुंजाइश है और जिन्हे लाना चाहिए। केवल भाग्य का ठीकरा फोड़ कर स्वयं को अलग नहीं किया जा सकता, इस बात से जो असल में इंसान के जीवन के लिए सहायक है।
इसलिए बहुत जरूरी है इंसान को अपनी सही क्षमता और पसंद की पहचान करके, उसके अनुरूप ही काम और लक्ष्य का चुनाव करना चाहिए। ताकि काम, तनाव का कारण कम बने। और जब काम पसंद का होगा तो काम में मन भी लगेगा ।
साथ ही अपने रिश्तों को, परिवार को , मित्रो आदि को भी समय देना चाहिए जिससे ना केवल प्रेम की प्रगाड़ता बढ़ती है, साथ ही अकेलेपन के अवसाद से भी इंसान बच जाता है । और आत्मबल भी बढ़ता है।
यहां सुलझे और सहज रहने से यही पर्याय है। की अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए। सरल रहे, खुश रहे, मुस्कुराते रहे ।
तर्क और बातों का कोई अंत नहीं । सुख और दुख एक हिस्सा है जीवन का । दोनों ही स्थितियों में एक सुलझा हुआ इंसान ही सुख का सही आनंद ले सकता है और दुःख से उबर सकता है। जीवन बहुत अनमोल और महत्वपूर्ण है। इसका सम्मान होना ही चाहिए।
Roop Singh 10/05/2020
Too beautiful and teachable
ReplyDeleteThankyou so much
DeleteSuperb
ReplyDeleteThankyou so much
Deleteअद्वतीय
ReplyDeleteऐसी पोएट्री मुश्किल से मिलती है, पढ़ने को। Thankyou for sharing and too good articles.
ReplyDelete💐🌹🌹🥀🥀🌷🌸🏵️🌼🌼🌷🥀🏵️🌱🌱☘️🍂🌵🌳🌳🌊🌬️🍂🌱🌱☘️🌊🌬️🏵️☘️🌿🌱🌱🌷🌺🏵️☘️🌅🌄🌄🍀🌿🌱🌹🥀🌷
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