Tuesday, April 7, 2020

धीरज

धीरज

Art by..Roop Singh



धीरज 

सूदूर ब्रह्माण्ड से आती एक किरण...
प्रकाश की....
स्याह नीली...

जैसे किसी नीले तारे से,
फूटकर आयी हो....

हृदय को चीरती है...
रक्त के ताप को करती है , शीतल !....

शारीरिक गतिशीलता को लेजाती है,
अर्दमूर्छित अवस्था में....

पूर्ण प्रयास से , कर्ण !
उस ध्वनि के द्वार पर पहुंचते है...
जो अब !
विवेक पटल तक गुंजायमान हो चली है...

कहती है...!

" धीरज रखो , वत्स ! "
" सयंम बरतो "

"समय की डोर कच्ची है ....
रक्त में बनाए रखो शीतलता ....
कहीं कर ना बैठना प्रहार, 
बरती समय पर ...."

"ध्यान रहे , ध्यान रहे"

"देखो ! क्षितिज की ओर उस ' नील ' को देखो !..."
"भविष्य ने जनम लिया है,  इसी क्षण "

"तुम्हारे लिए "
"तुम्हारे लिए "......

c@ Roop Singh 30/06/2017


      जीवन बड़ी उतार - चढ़ाव वाली यात्रा है। बिना उतार - चढ़ाव का जीवन इतना सरल हो सकता है कि, मनुष्य का बौद्धिक विकास ही न हो पाए। इसलिए भी जीवन में सुख के साथ दुःख और संघर्ष का होना भी महत्व रखता है। यहां मेरी कोई ऐसी मंशा नहीं है कि ईश्वर हमे दुःख भी दे। पर जो नियति मे लिखा होगा , वो तो संभवतः ही भोगना पड़ेगा।
    एक नैतिक और सामाजिक जीवन के लिए मूल्यों का होना बहुत आवश्यक है। मूल्य जैसे : सामाजिक मूल्य , सांसारिक मूल्य, पारिवारिक मूल्य और व्यक्तिगत मूल्य, और भी। ये सब मूल्य ही एक कल्याणकारी संरचना बना सकते है । व्यक्ति के अंदर भी और बाहर भी।
       जैसे कि मेरी उपरोक्त कविता का शीर्षक है "धीरज" । यह भी एक मूल्य ही है। जो कि जीवन में बहुत महत्व रखता है। जब जब धीरज नहीं रखा जाता तब तब भूल होने की संभावना अधिक रहती है।

      कई बार समय हमे धीरज रखने को कहता है। क्योंकि धीरज रखने से ना केवल वर्तमान में शांति और स्थिरता की संभावना बनती है, बल्किन एक अच्छा भविष्य भी निर्धारित होता है।

    रही बात कविता की , तो वह कई बार बहुत कम शब्दों में भी बहुत कुछ कह जाती है। जिसपर गहराई से विचार किया जा सकता है।


विचार

       विचार या नए विचार एक खूबसूरत देन है  इश्वर की, प्रकृति की या नियति की। एक विचारक, लेखक, कवि , कलाकार, अनुसंधानकर्ता या किसी के भी लिए, एक सकारात्मक विचार एक सुगंधित फूल सा होता है। जो अपनी महक से एक अद्वितीय आनंद प्रदान करता। अपनी मंत्रणा में डूबे हुए प्राणी को कई दृष्टिकोण देता है । विचार में कितने ही गोते लगाते रहो उसके अनमोल मोती समाप्त नहीं होते। उसे कितना ही मथो वह मूल्यवान भेटें देता रहता है। उसकी गहराई की थाह पाताल तक नहीं लगती। उसकी सीमा का कोई अंत नहीं होता। वह सम्पूर्ण अवसर देता है अपने वन - उपवन में विचरण और भ्रमण करने का। अपने आकाश में दूर - सूदूर तक झांकने और डोलने का।

      देखा जाए तो मनुष्य द्वारा निर्मित या लिखित  हर किसी चीज या लेख की उत्पति पहले एक विचार के रूप में ही हुई । वह स्वपन से आया हुआ भी हो सकता है। 

     एक फूल की जिस तरह अल्पआयु होती है। उस तरह विचार भी बहुत जल्द लोप हो सकता है। उसे संग्रहित करना आवश्यक और चुनौतीपूर्ण है।

     नए विचारों के आने से वह दब जाता है या लुप्त हो जाता है। अपनी स्मृति से उसे निकालकर फिरसे वही आनंद और सुगंध प्राप्त करना थोड़ा कठिन हो सकता है । इसलिए बेहतर यही होगा कि उसे पहले ही चरण में गृहण किया जाना चाहिए ।

        आविष्कार की नींव का पहला पत्थर विचार ही होता है।

4 comments:

Thankyou so much