Friday, March 20, 2020

वेदना

  वेदना



 मेरी प्रिय....
अब चाहे मैं कितना ही भटकता रहूं ....
चाहे मुझे कितने ही जनम मिले ....
क्या जाने ?
मेरी मुलाकात, अब तुमसे कब हो ....
या ना भी हो .....

ईश्वर जानता है ....
और, जानती हो तुम भी ....
हमारे सच्चे रिश्ते के हर छोटे - बड़े भाग को ....
के ! कितना ईमानदार रहे हम .....
एक दूसरे के लिए ....

आज तुम जो , मेरा ये भ्रम ....
तोड़कर चली गई हो ....
के ! मैं समझता था ....
तुम और मैं एक साथ रहेंगे हमेशा ....
मिट्टी से निर्मित इस देह में ...
मगर ये हो ना सका .....

शिकायत तो है ! तुमसे ....
और विधाता से भी ....
पर ! मैं भी जानता हूं ....
जीवन के चक्र का नियम ....
इसलिए ! पोंछ लेता हूं आंसू अपने .....
अपने ही हाथों से ....

हृदय की वेदना और हृदय का प्रेम ....
अमर रहेगा , आत्मा की तरह ....
जो जोड़े रखेगा मुझे तुमसे ....
हमेशा ! .....
ये वादा है तुमसे ....

मेरी प्रिय ....

और ये भी वादा है .....
चाहे  पुनर्जन्म की कहानियां ...
सच हो या ना हो ....
फिरभी, मैं भटकता रहूंगा ....
तुम्हारी यादों में ....
अपनी प्राथनाओं में ....
और अपने हृदय की वेदनाओं में ....
 तुम देख लेना .....

c@   Roop Singh 14/05/2016



कहावत है " जरूरत आविष्कार की जननी होती है " ।  सही है।  ऐसे ही विचार या किसी भी लेखन सामग्री का भी स्रोत होता है ( मेरा अनुभव ) ।  जो  कहीं से भी आया हुआ हो सकता है । 
ऐसे ही जो,  "वेदना"  मेरी कविता है,  उसका स्रोत मैं आपसे साझा कर रहा हूं ।

हुआ यूं के मैंने अपने एक मित्र से एक दिन अचानक , उसका हालचाल पूछने के लिए संपर्क किया । तब ! वो बहुत दुखद दिन था उसका ।  उसकी पत्नी का उसी समय देहांत हुआ था, एक दुर्घटना में।
और उसने अपनी आपबीती मुझे बताई । तब मुझे समझ नहीं आया , के अब मैं उसके साथ क्या बात करूं।
उसका दर्द मेरे भीतर घुस गया । और फिर मेरे द्वारा इस कविता ने जन्म लिया। जो कि मैं उस मित्र से भी आजतक साझा ना कर पाया।
ये कविता मैंने तब रोते हुए लिखी, यही सच है।

Wednesday, March 18, 2020

बहाना

बहाना....

जिन्दगी खाने से चलती है...
ना मिले ! तो दाने से चलती है....

तन ढकने को कपड़े हो....
जो अच्छे ना हो , तो फटे - पुराने से चलती है...

रहने को घर हो....
और जो ना हो....
तो तिरपाल चढ़ाकर तम्बू लगाने से चलती है....

जिन्दगी सबकी चलती है....
कुछ करने वालों की, जुगत लगाने से चलती है...

और कुछ ना करने वालों की ....?
नए - नए ढंग के बहाने से चलती है....!!

c@ Roop Singh 18/03/2020

      लेखन के कई प्रकार है । जिनमे से कविता भी है । जिसे लिखने और बोलने के अलग अलग प्रकार हो सकते है। महत्वपूर्ण है कविता का भाव। लेखक अपने भाव से लिखता है और पाठक अपने अंदाज में उस भाव को प्राप्त करता है। जो पाठक उसके मूल भाव और रस को समझता है, उस तक लेखन सामग्री पहुंच जाए तो लेखक कुछ सफल हुआ समझो।

        हर लेखक का अपना एक अंदाज़ होता है लिखने का, बात को सरल तरीके से सीधे भी लिखा जा सकता है और  अलग ढंग से भी। विषय का एक अपना प्रभाव होता है और उसके लिखने के ढंग का अपना। शब्दों के चयन की अपनी भूमिका होती है। लेखक अपनी तन्मयता से जो कुछ लिखता हे, सबसे पहले वही लेख का आनंद उठाता है। और जब पाठक को सामग्री उपलब्ध होती है तब पाठक की रुचि पर निर्भर करता है, वह कितनी गहराई में गोते लगा पाता    है । और कितना आनंद प्राप्त करता है।

Tuesday, March 17, 2020

प्रयास

प्रयास

वो बहक गया था, अपने एक स्वपन में आके..
उस अनमोल मोती को पाने के लिए..
अब वो गहराइयों में गोते लगाता..
पर हाथ उसके कुछ ना आता...
आखिर उसे समझना चाहिए था....
स्वपन के व्याकरण को...
पर वो नहीं माना....
जैसे कोई और अर्थ ही ना रह गया हो,
जीवन का, उसके लिए....

वो गहराइयों में पाताल तक जाता,...
परन्तु उसे हर बार एक ही शब्द, एक ही स्वर सुनाई पड़ता...

प्रयास....प्रयास....केवल प्रयास !!

c@ Roop Singh 17/03/2020

    हर वो व्यक्ति जो अपने जीवन में सफल होना चाहता है। जरूरी है वह एक उद्देश्य बनाए, लक्ष्य बनाए। एक सपना देखे अपने सफल होने का और उस सफलता के फल का । और उसकी प्राप्ति के लिए भरकस कोशिश करे। जब तक प्रयास करे तब तक के सफलता ना प्राप्त हो जाए।
 
   यही मेरी उपरोक्त पंकितियो का सार है।
बाकी कविता कई सारी बाते कहती है। उसके आनंद को ,उसके भाव को अलग अलग दृषटिकोण से समझा जा सकता है। और जीवन में सकारात्मक बदलाव भी लाया जा सकता है। बस व्यक्ति की रुचि अच्छे लेखन को पढ़ने में होनी चाहिए।

एक खोजी




एक खोजी

तुम एक रहस्यलोक मे रहे ....
हजारो युगों से....
क्या तुम्हे पता था ?
कोई तुम्हे इस तरह खोजेगा....

के ! गहराइयों के तलों तक तुम्हे टटोलेगा...
और रहस्य तुम्हारे सारे खोलेगा...

ये तुम्हारी सुंदरता की जटिलता नहीं थी केवल...
ये एक हटी खोजी की प्रयत्नशीलता भी रही...!!

c@ Roop Singh 22/01/2020

       जब भी हम कुछ अच्छा पढ़ते है। तब हमें एक आत्मिक सुख़ तो मिलता ही है। साथ ही हमारे विवेक के सोचने समझने का एक तरीका विकसित होता है या उसपर विचार के लिए उत्सुक और रुचिकर होता है । अच्छा पढ़ना लिखना व्यक्ति को विवेकशील बनाता
है। और तब व्यक्ति अपने अंतर्मन में स्वयं से एक अच्छी बार्तालाप कर पाता है।
   
        वैसे मैंने ये कविता एक बायोलॉजिस्ट कि खोज से प्रेरित होकर लिखि थी।
         मानव जीवन की इतिहास से लेकर अब तक जो यात्रा रही है। उसमे हमने पहिए से लेकर आज की नई तकनीकी तक कई महत्वपर्ण खोजें की । साथ ही हमने स्वास्थ्य के क्षेत्र में , भूगोलिक गतविधियों से लेकर अंतरिक्ष में भी दूर तक कई खोजें और जानकारियां जुटाई है। जिनसे हमे सहूलियतों के साथ साथ , हमारे ज्ञान को भी वृद्धि मिली। और आज भी अलग अलग क्षेत्रों में नई पीढ़ी नए आयाम गड़ रही है। हमारे पुरातत्वविदों ने भी जिस तरह छुपे हुए रहस्यों को उजागर करके लोगों को इतिहास और पुरानी जीवन शैली , व्यवस्था आदि को जानने समझने का मौका दिया। ये सराहनीय है।

          अगर हम किसी भी क्षेत्र के एक खोजकर्ता कि दृष्टि से देखे तो वो अपने पूर्व आकलन, अनुभव, सिद्धान्तों, कई वर्षों के परिश्रम, अनुसंधान आदि के बल पर काम करता है। और सबसे महत्वपूर्ण उसका जूनून, उसकी महत्वाकांक्षा , उसके किए गए कार्य आदि किस तरह एक छुपे हुए रहस्य से पर्दा उठाते है। किस तरह जो रोमांच वर्षों से उसके दिलो - दिमाग ,सपनों में उसे बेचैन करता रहा, उस रोमांच को सबके सामने प्रकट कर देता है। खूबसूरत और दुनिया के लिए जरूरी खोजें करता है।
      जो अंतिम पंक्ति है। " ये तुम्हारी सुंदरता की जटिलता नहीं थी, केवल !  ये एक हटी खोजी की प्रयत्नशीलता भी रही  "!
       तो जो आकर्षण था , वो दोनों तरफ था। जिसके चलते रहस्य को एक दिन प्रकट होना ही पड़ता है।

Roop Singh