वेदना
मेरी प्रिय....
अब चाहे मैं कितना ही भटकता रहूं ....
चाहे मुझे कितने ही जनम मिले ....
क्या जाने ?
मेरी मुलाकात, अब तुमसे कब हो ....
या ना भी हो .....
ईश्वर जानता है ....
और, जानती हो तुम भी ....
हमारे सच्चे रिश्ते के हर छोटे - बड़े भाग को ....
के ! कितना ईमानदार रहे हम .....
एक दूसरे के लिए ....
आज तुम जो , मेरा ये भ्रम ....
तोड़कर चली गई हो ....
के ! मैं समझता था ....
तुम और मैं एक साथ रहेंगे हमेशा ....
मिट्टी से निर्मित इस देह में ...
मगर ये हो ना सका .....
शिकायत तो है ! तुमसे ....
और विधाता से भी ....
पर ! मैं भी जानता हूं ....
जीवन के चक्र का नियम ....
इसलिए ! पोंछ लेता हूं आंसू अपने .....
अपने ही हाथों से ....
हृदय की वेदना और हृदय का प्रेम ....
अमर रहेगा , आत्मा की तरह ....
जो जोड़े रखेगा मुझे तुमसे ....
हमेशा ! .....
ये वादा है तुमसे ....
मेरी प्रिय ....
और ये भी वादा है .....
चाहे पुनर्जन्म की कहानियां ...
सच हो या ना हो ....
फिरभी, मैं भटकता रहूंगा ....
तुम्हारी यादों में ....
अपनी प्राथनाओं में ....
और अपने हृदय की वेदनाओं में ....
तुम देख लेना .....
c@ Roop Singh 14/05/2016
कहावत है " जरूरत आविष्कार की जननी होती है " । सही है। ऐसे ही विचार या किसी भी लेखन सामग्री का भी स्रोत होता है ( मेरा अनुभव ) । जो कहीं से भी आया हुआ हो सकता है ।
ऐसे ही जो, "वेदना" मेरी कविता है, उसका स्रोत मैं आपसे साझा कर रहा हूं ।
हुआ यूं के मैंने अपने एक मित्र से एक दिन अचानक , उसका हालचाल पूछने के लिए संपर्क किया । तब ! वो बहुत दुखद दिन था उसका । उसकी पत्नी का उसी समय देहांत हुआ था, एक दुर्घटना में।
और उसने अपनी आपबीती मुझे बताई । तब मुझे समझ नहीं आया , के अब मैं उसके साथ क्या बात करूं।
उसका दर्द मेरे भीतर घुस गया । और फिर मेरे द्वारा इस कविता ने जन्म लिया। जो कि मैं उस मित्र से भी आजतक साझा ना कर पाया।
ये कविता मैंने तब रोते हुए लिखी, यही सच है।