Thursday, September 10, 2020

गुलाब

 

गुलाब


Art work by...Roop Singh

गुलाब


तनिक दिखाओ तो सही...

मेरी मालन...!

क्या लाई हो आज, दोपहर के खाने में...

और क्यों ? तुम मेरे लिए...

एक कोमल पुष्प, बगिया से तोड़ लाती हो...

रोज़ाना ही....


कहां संभाल पाऊंगा मैं इनकी ख़ुशबू....

तुम ही तुम तो रहती हो...

मेरे हृदय और मस्तिष्क में...


अरे वाह !...'खीर - पुडी'...

कैसे तुम जान जाती हो...

मेरी पसंद ना पसंद...


मेरे प्रीतम...

तुम्हें याद है ना!

तुम्हें गुलाब और इनकी महक कितनी पसंद थी...

के तुम मेरी बगिया के रस्ते आ जाया करते थे...

हर रोज़ ही...


इन्हीं गुलाबों की देन तो है...

हमारा प्रेम प्रसंग और हमारा ये मिलाप...

कहीं ये गुलाब बुरा ना मान जाएं...

इसीलिए मैं रखती हूं इन्हें, हमारी मुलाकातों के बीच...

ताकि महकता रहे हमारा प्रेम...


चलो अब...खीर खालो !!


(c)@ Roop Singh 10/09/20

Wednesday, August 12, 2020

छतरी

 छतरी



वो टूटी हुई छतरी...
मेरे, मर चुके दादा की...

वो बड़ी सी छतरी...
कपास के सूती कपड़े वाली...
काले रंग की छतरी...
मेरे दादा की...

छड़ी जैसे डंडे वाली...
वो फटी हुई छतरी...
जिसके चाको पर लगी हैं पातियां ....
वो पुरानी सी छतरी...
मेरे दादा की...

जिसकी तिल्लियां अब भी, खुलने को आतुर दिखाई पड़ती हैं...
जिन्हें देखकर, मुझे लगता है....
जब ठंड के किसी एक दिन, भयंकर बारिश होगी....
तब ये छतरी ! ....
मेरे, मर चुके दादा की छतरी...

मुझे जरूर बचा लेगी...

ऐसे ही थोड़े संभाल कर रखी होगी...
मेरे पिता ने...

(c) @ Roop Singh 12/08/20


Art work by...Roop Singh


पुरानी चीजें


    घर मैं बहुत सी पुरानी चीजों को सहेज कर रखने के पक्ष में मैं नहीं हूं। हमें वर्तमान में जीना चाहिए। भविष्य को गढ़ना चाहिए। और अपने स्तर पर भी कुछ खास ऐसा करना चाहिए। जिसे सहेजा जाए। कुल मिला कर मैं कुछ खास और सृजनात्मक चीजों को सहेज कर रखने के पक्ष में हूं। अगर हम भी कुछ अनूठा करेगें तो चाहेंगे की उसे सहेजा जाए। आने वाली पीढ़ी भी उसे सहेजे। ऐसे ही जो हमारे बुजुर्ग कुछ खास करके गए, हमें उनके सम्मान में और भावी पीढ़ी के प्रेरणा स्रोत के लिए उनके किए गए कामों या उनके द्वारा छोड़ी गई कुछ खास वस्तुओं को जरूर संभालना चाहिए।
            ये उचित भी है। एक तो जो अपने बुजुर्ग हमसे दूर जा चुके हैं, इन चीजों के माध्यम से वे हमारे पास ही जान पड़ते है। दूसरा उनके प्यार और आशीर्वाद की महक बनी रहती है। पुरानी वस्तु या काम की एक अलग कीमत भी होती है। और एक अलग और बेजोड़, हृदय को छूने वाला जुड़ाव भी। और पुरानी चीजें हमारे अंदर भी एक सकारात्मक ऊर्जा भर्ती है , हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है । सच पूछो ! तो यही पुरानी चीजें और पुराने काम चाहे वो साहित्य में हो या कला की किसी विद्या में।  ये सब हमें कलात्मक बनाते है और अपने अनुभव हमें प्रदान करते है। हमें भी उनकी मेहनत और उनके खोजे तरीकों या उपकरण आदि का सम्मान करना चाहिए। सही तरीका यही है कि , हम उनके काम को ना केवल सही ढंग से सहेजें - सराहें, साथ में उसे देखें भी, समझे भी,  सुने भी और उससे कुछ सीखें और कुछ नया करें।

Roop Singh 06/09/20   11:30 AM

Saturday, June 6, 2020

सावन

सावन

Photo credit..Roop Singh

सावन


कुछ वक़्त पहले कि ही बात है..
जब ये सावन आया ना था..
ये पहाड़ , कितने उजाड़ और सूने थे..
इनकी सुलगती ऊंचाइयों को देख, डर लगता था..

और अब ! सावन के आने से..
क्या गजब की छा गई है, हरियाली इनपर..
रोज़ ही लगती है, रिम-झिम झड़ी फुहारों की..
और फूट आएं है चट्टानों से, झरने कितने..

लगता है जैसे ! कोई गीत छिड़ने वाला है..
वातावरण में, तत्क्षण ही.....

अब इन पहाड़ों केेे चरम शिखर पर चढ़ जाने को जी चाहता है..

एक अस्पष्ट ध्वनि सुनाई सी पड़ती है...
नूपुरों की, हर एक दिशा से...
 
 स्मृति की बेला पर जैसे, स्वर्ण पुष्प खिल रहे हें...
हर एक गरज के संग....

और झूमकर बरस रहा है, सावन....
नाच रहा है, मयूरा देखो....!

मन से एक ही आवाज़ उठती है अब...

हाय! ये सावन की रितु चली ना जाए..
चली ना जाए , 'ये रितु'....

(C) @ Roop Singh  19/06/2015



बदलाव

      जिंदगी कभी एक जैसी नहीं रहती। वो हर पल बदलती रहती है।चेहरे की लकीरों में, रिश्तों की गांठों में, अटकलों में, आशंकाओं में, सोचने समझने की शक्ति में, देह की गर्मी में, आवाज़ की गरज़ और लरज़  में, टूटते बंधनों में, छूटते सपनों में जिंदगी बदलती ही रहती है। 

      जिंदगी अपने प्रयासों में भी बदलती है। जब हम एक सकारात्मक दृष्टिकोण से जिंदगी में आगे बढ़ते है। तब हम बेहतर शिक्षा ग्रहण करते है, हम अपने जीने का तरीका विकसित करते है। जिसमें हम अपने बोलने, चलने , खाने , सोने आदि से लेकर व्यवहार और सामाजिक ढंग में संतुलित सामंजस्य स्थापित कर पाते हैं। हम एक आंतरिक दृष्टि भी प्राप्त कर पाते है। जिसकी सहायता से, हम दुख़ - सुख में, अच्छे - बुरे समय में, प्रकृति के नियमों में, अपने सपनों में , अपनी आस्था और भक्ति में, अपनी आशाओं और आशंकाओं में, अपने अंदरुनी वार्तालाप में और अन्य परिस्थितियों में भी, एक सही सारांश निकाल पाते है। और तब हम जीवन के हर जाते हुए क्षण को बेहतर जी पाते हैं। निश्चय करने और संकल्प को साधने के लिए तैयार हो पाते है।
 
         हमारा दुःख हमें कुछ सिखा कर जाता  है। तो हमारी उपलब्धि हमारे संघर्ष को सराहती है। हमें खुशी प्रदान करती है। बदलाव नियति है, बदलाव समय के बहने का साक्ष्य है। हमें बदलाव के लिए तैयार रहना चाहिए। समय के साथ आगे बहते रहने के लिए।
     बदलाव ना केवल दुःख जीवन मे लाता है, बदलाव सुख़ भी जरूर लाता है। वर्तमान इसी तरह भविष्य की ओर प्रगति करता है । 

(c) @ Roop Singh 19/06/2015

Friday, May 8, 2020

अर्थ

अर्थ

Photo credit...@ Roop Singh



अर्थ


उम्र बिताई अबतक, हेर-फेर में.....
के !  सुलझ जाएगी जिन्दगी.....
मगर ! उलझा ही रहा हमेशा.....
बिना काम और बिना लक्ष्य के....
छोटी - छोटी सी बातों में....
जिनका कोई अर्थ, था ही नहीं जीवन में....
और ना कभी हो सकता था......

बहुत सोच विचार किया....
के ! कब पसंद था मुझे ?.....
इस तरह उलझे रहना......
बिना काम और बिना लक्ष्य के.......
छोटी - छोटी सी बातों में.....
जिनका कोई अर्थ, हो नहीं सकता था.....
मेरे इस बहुमूल्य जीवन में.....

सो आज ! अपने अधूरे अनुभव से......
पंहुचा हूं इस निष्कर्ष पे....
सहज और सुलझे रहने से ही.......
होता है पूर्ण ! अर्थ इस जीवन का....
और,  सहज और सुलझे रहने से ही होती है सुगम....
किसी लक्ष्य की प्राप्ति .....

और इतने सब, अंदरूणी उथल - पुथल  के बाद.....
भरता हूं, एक लम्बी सांस.....
पाता हूं स्वयं को सहज और सुलझा.....

जैसे : खुल गए हो, ज्ञान के चक्षु.....
दिखता है , पूर्ण होते हुए.....
अर्थ ! इस बहुमूल्य जीवन का....

और समझता हूं....
यही मानव प्रकृति का प्रतिपालन है...... 


(c) @ Roop Singh  16/02/2016


Photo credit..@ Roop Singh


   मंथन


       ये बहुत महत्व रखता है, के जीवन के प्रति हमारा नजरिया और व्यवहार कैसा है। हमे परिश्रमी, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, करूणावान, सत्यवान, देशभक्त, परहितकारी, मिलनसार, पर्यावरण रक्षक और एक अच्छा व्यक्ति और नागरिक होने के लिए जिन सही आचरणों की आवश्यकता पड़े उन्हें अपनाना चाहिए। यही उत्तम मार्ग है एक सुखमय जीवन और समाज के लिए। ये सभी की जिम्मेदारी भी है।

     पर व्यक्तिगत रूप से इंसान की प्रकृति ऐसी है । कि ! उसे अपने आप में शांत और संतुष्ट होने की एक चाह तो होती है। पर वह हमेशा भटकाव और अस्थिरता का चुनाव ज्यादातर करता है। इसके अनेक कारण वर्णित है किताबों, काव्यों, ग्रंथो आदि में। मुख्य वजह उसकी अपनी लालसा हो सकती है और आज के दौर में तो इंसान का जो व्यावसायिक आधुनिकरण हुआ है, उसके चलते कई और कारण भी जुड़ गए है। चाहे ना चाहे भी इंसान उलझनों को न्यौता दे देता या उनमें फंस जाता है। जंहा उसे मानसिक तनाव से भी गुजरना होता है। और कई बार अवसाद इंसान के दिल दिमाग में घर कर जाता है। इसकी भी अनदेखी नहीं होनी चाहिए। क्योंकि अवसाद का  बुरा प्रभाव शरीर पर भी होता है। दिनचर्या , खानपान  , निंद्रा आदि में होने वाले बदलावों के कारण।

           इसलिए इंसान को चाहिए कि सुलझा हुआ रहे, सहज रहे और सरल रहने की कोशिश करे। अब सवाल उठता है कैसे ?
     
    तो देखिए! इंसान की मूल जरूरतें इतनी भी नहीं की जितनी चीजों के पीछे आज इंसान भागता है। और एक ऐसे चक्र में स्वयं को फसा लेता है। जहां वह स्वयं को जीना भूल जाता है, समय का सही उपयोग किए बिना उसे गुजरने देता है। इंसान होने की मौलिकता से  कट जाता है। यहां बदलाव लाने की बहुत गुंजाइश है और जिन्हे लाना चाहिए। केवल भाग्य का ठीकरा फोड़ कर स्वयं को अलग नहीं किया जा सकता,  इस बात से जो असल में इंसान के जीवन  के लिए सहायक है।

    इसलिए बहुत जरूरी है इंसान को अपनी सही क्षमता और पसंद की पहचान करके, उसके अनुरूप ही काम और लक्ष्य का चुनाव करना चाहिए। ताकि काम, तनाव का कारण कम बने।  और जब काम पसंद का होगा तो काम में मन भी लगेगा ।

     साथ ही  अपने रिश्तों को, परिवार को , मित्रो आदि को भी समय देना चाहिए जिससे ना केवल प्रेम की प्रगाड़ता बढ़ती है, साथ ही अकेलेपन के अवसाद से भी इंसान बच जाता है । और आत्मबल भी बढ़ता है।
   
         यहां सुलझे और सहज रहने से यही पर्याय है। की अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए। सरल रहे, खुश रहे, मुस्कुराते रहे ।
तर्क और बातों का कोई अंत नहीं । सुख और दुख एक हिस्सा है जीवन का । दोनों ही स्थितियों में एक सुलझा हुआ इंसान ही सुख का सही आनंद ले सकता है और दुःख से उबर सकता है। जीवन बहुत अनमोल और महत्वपूर्ण है। इसका सम्मान होना ही चाहिए।

Roop Singh 10/05/2020


Tuesday, April 7, 2020

धीरज

धीरज

Art by..Roop Singh



धीरज 

सूदूर ब्रह्माण्ड से आती एक किरण...
प्रकाश की....
स्याह नीली...

जैसे किसी नीले तारे से,
फूटकर आयी हो....

हृदय को चीरती है...
रक्त के ताप को करती है , शीतल !....

शारीरिक गतिशीलता को लेजाती है,
अर्दमूर्छित अवस्था में....

पूर्ण प्रयास से , कर्ण !
उस ध्वनि के द्वार पर पहुंचते है...
जो अब !
विवेक पटल तक गुंजायमान हो चली है...

कहती है...!

" धीरज रखो , वत्स ! "
" सयंम बरतो "

"समय की डोर कच्ची है ....
रक्त में बनाए रखो शीतलता ....
कहीं कर ना बैठना प्रहार, 
बरती समय पर ...."

"ध्यान रहे , ध्यान रहे"

"देखो ! क्षितिज की ओर उस ' नील ' को देखो !..."
"भविष्य ने जनम लिया है,  इसी क्षण "

"तुम्हारे लिए "
"तुम्हारे लिए "......

c@ Roop Singh 30/06/2017


      जीवन बड़ी उतार - चढ़ाव वाली यात्रा है। बिना उतार - चढ़ाव का जीवन इतना सरल हो सकता है कि, मनुष्य का बौद्धिक विकास ही न हो पाए। इसलिए भी जीवन में सुख के साथ दुःख और संघर्ष का होना भी महत्व रखता है। यहां मेरी कोई ऐसी मंशा नहीं है कि ईश्वर हमे दुःख भी दे। पर जो नियति मे लिखा होगा , वो तो संभवतः ही भोगना पड़ेगा।
    एक नैतिक और सामाजिक जीवन के लिए मूल्यों का होना बहुत आवश्यक है। मूल्य जैसे : सामाजिक मूल्य , सांसारिक मूल्य, पारिवारिक मूल्य और व्यक्तिगत मूल्य, और भी। ये सब मूल्य ही एक कल्याणकारी संरचना बना सकते है । व्यक्ति के अंदर भी और बाहर भी।
       जैसे कि मेरी उपरोक्त कविता का शीर्षक है "धीरज" । यह भी एक मूल्य ही है। जो कि जीवन में बहुत महत्व रखता है। जब जब धीरज नहीं रखा जाता तब तब भूल होने की संभावना अधिक रहती है।

      कई बार समय हमे धीरज रखने को कहता है। क्योंकि धीरज रखने से ना केवल वर्तमान में शांति और स्थिरता की संभावना बनती है, बल्किन एक अच्छा भविष्य भी निर्धारित होता है।

    रही बात कविता की , तो वह कई बार बहुत कम शब्दों में भी बहुत कुछ कह जाती है। जिसपर गहराई से विचार किया जा सकता है।


विचार

       विचार या नए विचार एक खूबसूरत देन है  इश्वर की, प्रकृति की या नियति की। एक विचारक, लेखक, कवि , कलाकार, अनुसंधानकर्ता या किसी के भी लिए, एक सकारात्मक विचार एक सुगंधित फूल सा होता है। जो अपनी महक से एक अद्वितीय आनंद प्रदान करता। अपनी मंत्रणा में डूबे हुए प्राणी को कई दृष्टिकोण देता है । विचार में कितने ही गोते लगाते रहो उसके अनमोल मोती समाप्त नहीं होते। उसे कितना ही मथो वह मूल्यवान भेटें देता रहता है। उसकी गहराई की थाह पाताल तक नहीं लगती। उसकी सीमा का कोई अंत नहीं होता। वह सम्पूर्ण अवसर देता है अपने वन - उपवन में विचरण और भ्रमण करने का। अपने आकाश में दूर - सूदूर तक झांकने और डोलने का।

      देखा जाए तो मनुष्य द्वारा निर्मित या लिखित  हर किसी चीज या लेख की उत्पति पहले एक विचार के रूप में ही हुई । वह स्वपन से आया हुआ भी हो सकता है। 

     एक फूल की जिस तरह अल्पआयु होती है। उस तरह विचार भी बहुत जल्द लोप हो सकता है। उसे संग्रहित करना आवश्यक और चुनौतीपूर्ण है।

     नए विचारों के आने से वह दब जाता है या लुप्त हो जाता है। अपनी स्मृति से उसे निकालकर फिरसे वही आनंद और सुगंध प्राप्त करना थोड़ा कठिन हो सकता है । इसलिए बेहतर यही होगा कि उसे पहले ही चरण में गृहण किया जाना चाहिए ।

        आविष्कार की नींव का पहला पत्थर विचार ही होता है।

Friday, March 20, 2020

वेदना

  वेदना



 मेरी प्रिय....
अब चाहे मैं कितना ही भटकता रहूं ....
चाहे मुझे कितने ही जनम मिले ....
क्या जाने ?
मेरी मुलाकात, अब तुमसे कब हो ....
या ना भी हो .....

ईश्वर जानता है ....
और, जानती हो तुम भी ....
हमारे सच्चे रिश्ते के हर छोटे - बड़े भाग को ....
के ! कितना ईमानदार रहे हम .....
एक दूसरे के लिए ....

आज तुम जो , मेरा ये भ्रम ....
तोड़कर चली गई हो ....
के ! मैं समझता था ....
तुम और मैं एक साथ रहेंगे हमेशा ....
मिट्टी से निर्मित इस देह में ...
मगर ये हो ना सका .....

शिकायत तो है ! तुमसे ....
और विधाता से भी ....
पर ! मैं भी जानता हूं ....
जीवन के चक्र का नियम ....
इसलिए ! पोंछ लेता हूं आंसू अपने .....
अपने ही हाथों से ....

हृदय की वेदना और हृदय का प्रेम ....
अमर रहेगा , आत्मा की तरह ....
जो जोड़े रखेगा मुझे तुमसे ....
हमेशा ! .....
ये वादा है तुमसे ....

मेरी प्रिय ....

और ये भी वादा है .....
चाहे  पुनर्जन्म की कहानियां ...
सच हो या ना हो ....
फिरभी, मैं भटकता रहूंगा ....
तुम्हारी यादों में ....
अपनी प्राथनाओं में ....
और अपने हृदय की वेदनाओं में ....
 तुम देख लेना .....

c@   Roop Singh 14/05/2016



कहावत है " जरूरत आविष्कार की जननी होती है " ।  सही है।  ऐसे ही विचार या किसी भी लेखन सामग्री का भी स्रोत होता है ( मेरा अनुभव ) ।  जो  कहीं से भी आया हुआ हो सकता है । 
ऐसे ही जो,  "वेदना"  मेरी कविता है,  उसका स्रोत मैं आपसे साझा कर रहा हूं ।

हुआ यूं के मैंने अपने एक मित्र से एक दिन अचानक , उसका हालचाल पूछने के लिए संपर्क किया । तब ! वो बहुत दुखद दिन था उसका ।  उसकी पत्नी का उसी समय देहांत हुआ था, एक दुर्घटना में।
और उसने अपनी आपबीती मुझे बताई । तब मुझे समझ नहीं आया , के अब मैं उसके साथ क्या बात करूं।
उसका दर्द मेरे भीतर घुस गया । और फिर मेरे द्वारा इस कविता ने जन्म लिया। जो कि मैं उस मित्र से भी आजतक साझा ना कर पाया।
ये कविता मैंने तब रोते हुए लिखी, यही सच है।

Wednesday, March 18, 2020

बहाना

बहाना....

जिन्दगी खाने से चलती है...
ना मिले ! तो दाने से चलती है....

तन ढकने को कपड़े हो....
जो अच्छे ना हो , तो फटे - पुराने से चलती है...

रहने को घर हो....
और जो ना हो....
तो तिरपाल चढ़ाकर तम्बू लगाने से चलती है....

जिन्दगी सबकी चलती है....
कुछ करने वालों की, जुगत लगाने से चलती है...

और कुछ ना करने वालों की ....?
नए - नए ढंग के बहाने से चलती है....!!

c@ Roop Singh 18/03/2020

      लेखन के कई प्रकार है । जिनमे से कविता भी है । जिसे लिखने और बोलने के अलग अलग प्रकार हो सकते है। महत्वपूर्ण है कविता का भाव। लेखक अपने भाव से लिखता है और पाठक अपने अंदाज में उस भाव को प्राप्त करता है। जो पाठक उसके मूल भाव और रस को समझता है, उस तक लेखन सामग्री पहुंच जाए तो लेखक कुछ सफल हुआ समझो।

        हर लेखक का अपना एक अंदाज़ होता है लिखने का, बात को सरल तरीके से सीधे भी लिखा जा सकता है और  अलग ढंग से भी। विषय का एक अपना प्रभाव होता है और उसके लिखने के ढंग का अपना। शब्दों के चयन की अपनी भूमिका होती है। लेखक अपनी तन्मयता से जो कुछ लिखता हे, सबसे पहले वही लेख का आनंद उठाता है। और जब पाठक को सामग्री उपलब्ध होती है तब पाठक की रुचि पर निर्भर करता है, वह कितनी गहराई में गोते लगा पाता    है । और कितना आनंद प्राप्त करता है।

Tuesday, March 17, 2020

प्रयास

प्रयास

वो बहक गया था, अपने एक स्वपन में आके..
उस अनमोल मोती को पाने के लिए..
अब वो गहराइयों में गोते लगाता..
पर हाथ उसके कुछ ना आता...
आखिर उसे समझना चाहिए था....
स्वपन के व्याकरण को...
पर वो नहीं माना....
जैसे कोई और अर्थ ही ना रह गया हो,
जीवन का, उसके लिए....

वो गहराइयों में पाताल तक जाता,...
परन्तु उसे हर बार एक ही शब्द, एक ही स्वर सुनाई पड़ता...

प्रयास....प्रयास....केवल प्रयास !!

c@ Roop Singh 17/03/2020

    हर वो व्यक्ति जो अपने जीवन में सफल होना चाहता है। जरूरी है वह एक उद्देश्य बनाए, लक्ष्य बनाए। एक सपना देखे अपने सफल होने का और उस सफलता के फल का । और उसकी प्राप्ति के लिए भरकस कोशिश करे। जब तक प्रयास करे तब तक के सफलता ना प्राप्त हो जाए।
 
   यही मेरी उपरोक्त पंकितियो का सार है।
बाकी कविता कई सारी बाते कहती है। उसके आनंद को ,उसके भाव को अलग अलग दृषटिकोण से समझा जा सकता है। और जीवन में सकारात्मक बदलाव भी लाया जा सकता है। बस व्यक्ति की रुचि अच्छे लेखन को पढ़ने में होनी चाहिए।

एक खोजी




एक खोजी

तुम एक रहस्यलोक मे रहे ....
हजारो युगों से....
क्या तुम्हे पता था ?
कोई तुम्हे इस तरह खोजेगा....

के ! गहराइयों के तलों तक तुम्हे टटोलेगा...
और रहस्य तुम्हारे सारे खोलेगा...

ये तुम्हारी सुंदरता की जटिलता नहीं थी केवल...
ये एक हटी खोजी की प्रयत्नशीलता भी रही...!!

c@ Roop Singh 22/01/2020

       जब भी हम कुछ अच्छा पढ़ते है। तब हमें एक आत्मिक सुख़ तो मिलता ही है। साथ ही हमारे विवेक के सोचने समझने का एक तरीका विकसित होता है या उसपर विचार के लिए उत्सुक और रुचिकर होता है । अच्छा पढ़ना लिखना व्यक्ति को विवेकशील बनाता
है। और तब व्यक्ति अपने अंतर्मन में स्वयं से एक अच्छी बार्तालाप कर पाता है।
   
        वैसे मैंने ये कविता एक बायोलॉजिस्ट कि खोज से प्रेरित होकर लिखि थी।
         मानव जीवन की इतिहास से लेकर अब तक जो यात्रा रही है। उसमे हमने पहिए से लेकर आज की नई तकनीकी तक कई महत्वपर्ण खोजें की । साथ ही हमने स्वास्थ्य के क्षेत्र में , भूगोलिक गतविधियों से लेकर अंतरिक्ष में भी दूर तक कई खोजें और जानकारियां जुटाई है। जिनसे हमे सहूलियतों के साथ साथ , हमारे ज्ञान को भी वृद्धि मिली। और आज भी अलग अलग क्षेत्रों में नई पीढ़ी नए आयाम गड़ रही है। हमारे पुरातत्वविदों ने भी जिस तरह छुपे हुए रहस्यों को उजागर करके लोगों को इतिहास और पुरानी जीवन शैली , व्यवस्था आदि को जानने समझने का मौका दिया। ये सराहनीय है।

          अगर हम किसी भी क्षेत्र के एक खोजकर्ता कि दृष्टि से देखे तो वो अपने पूर्व आकलन, अनुभव, सिद्धान्तों, कई वर्षों के परिश्रम, अनुसंधान आदि के बल पर काम करता है। और सबसे महत्वपूर्ण उसका जूनून, उसकी महत्वाकांक्षा , उसके किए गए कार्य आदि किस तरह एक छुपे हुए रहस्य से पर्दा उठाते है। किस तरह जो रोमांच वर्षों से उसके दिलो - दिमाग ,सपनों में उसे बेचैन करता रहा, उस रोमांच को सबके सामने प्रकट कर देता है। खूबसूरत और दुनिया के लिए जरूरी खोजें करता है।
      जो अंतिम पंक्ति है। " ये तुम्हारी सुंदरता की जटिलता नहीं थी, केवल !  ये एक हटी खोजी की प्रयत्नशीलता भी रही  "!
       तो जो आकर्षण था , वो दोनों तरफ था। जिसके चलते रहस्य को एक दिन प्रकट होना ही पड़ता है।

Roop Singh